( तर्ज - अजि ! कौन जगा जगनेकी है ० )
जप निपट निरंजन भाई रे !
फिर जमका धोखा नाही रे ॥टेक ॥
काहे करे नर ! आसन साधन ?
क्यों बनवावे मुंड मुँडासन ? ।
सहज समाधि सुखाई !
फिर जमका ० ॥ १ ॥
सहज लगाकर दिलमें तारी ,
पकड़ भावसे खास तँबूरी ।
अष्टप्रहर धुन होई रे !
फिर जमका ० ॥२ ॥
सोहँ हंसा ’ उठत उचारा ,
ख्याल लगा रँग चढे नियारा ।
अनुभवका पद पाईरे !
फिर जमका ० ॥ ३ ॥
तुकड्यादास कहे मन भूला
बजत मधुर घंडा घडियाला
मार्ग बडा सुखदायी रे!
फिर जमका || ४ ||
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा